उज़ैर ई.रहमान की ये गज़लें और नज़्में एक तजरबेकार दिल-दिमाग की अभिव्यक्तियाँ हैं। सँभली हुई ज़बान में दिल की अनेक गहराइयों से निकली उनकी गज़लें कभी हमें माज़ी में ले जाती हैं, कभी प्यार में मिली उदासियों को याद करने पर मजबूर करती हैं, कभी साथ रहनेवाले लोगों और ज़माने के बारे में, उनसे हमारे रिश्तों के बारे में सोचने को उकसाती हैं और कभी सियासत की सख्तदिली की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित करती हैं। कहते हैं, साजिशें बंद हों तो दम आये, फिर लगे देश लौट आया है। इन गज़लों को पढ़ते हुए उर्दू गज़लगोई की पुरानी रिवायतें भी याद आती हैं और ज़माने के साथ कदम मिलाकर चलने वाली नई गज़ल के रंग भी दिखाई देते हैं। संकलन में शामिल नज़्मों का दायरा और भी बड़ा है। 'चुनाव के बाद' शीर्षक एक नज़्म की कुछ पंक्तियाँ देखें सामने सीधी बात रख दी है/ देशभक्ति तुम्हारा ठेका नहीं ज़ात-मजहब बने नहीं बुनियाद/बढ़के इससे है कोई धोखा नहीं। / कहते अनपढ़-गंवार हैं इनको/ नाम लेते हैं जैसे हो गाली/ कर गए हैं मगर ये ऐसा कुछ/ हो न तारीफ से ज़बान खाली। यह शायर का उस जनता को सलाम है जिसने चुनाव में अपने वोट की ताकत दिखाते हुए एक घमंडी राजनीतिक पार्टी को धूल चटा दी। इस नज़्म की तरह उज़ैर ई. रह&
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