जुए की आमदनी से महरूम होकर कारी ने अब अपनी सारी शक्ति को सूदखोरी, कुरानफुरोशी तथा कर्जदारों और किरायेदारों के घर आश खाने में लगा दिया। जब वह बड़ा हुआ और पैसा भी उसके पास अधिक हो गया, तो उसने छोटे सूदखोरों का पीछा छोड़ दिया, क्योंकि उसमें उसका कुछ पैसा डूब जाता था। अब उसने बड़े-बड़े दुकानदारों और सौदागरों के साथ लेने-देन शुरू किया। बड़े बायों (सेठों) के यहाँ उसका पैसा बिलकुल नहीं डूबता था। अगर वह वैसा करना भी चाहें, तो भी दूसरे दिन जरूरत होने पर कारी इस्मत के पहिले पैसे को लौटाना जरूरी होता । उसके कहने के अनुसार जवानी के समय दो बायों के हाथ में दो बार पैसा डूबा था, लेकिन उसने उसके बदले में बिना पैसा दिये उनकी लड़कियों को अपनी बीबी बनाकर हिसाब अपना ठीक कर लिया। यह दोनों औरतें टोपी बुनना जानती थीं। आखिरी उमर तक दोनों उसी घर में रहीं। यह दोनों उन्हीं दिवालिया सौदागरों की लड़कियाँ थीं।
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