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Paperback Samyawad Hi Kyon [Hindi] Book

ISBN: 9356829756

ISBN13: 9789356829756

Samyawad Hi Kyon [Hindi]

हमारे देश की गरीबी ऐसी नहीं है जिसका इलाज न हो। सभी साधन रहते भी हम बेबस हैं, क्योंकि हम उन साधनों का इस्तेमाल कर नहीं सकते। मनुष्य का श्रम ही तो धन है। भारत के पैंतीस करोड़ आदमियों में अठारह करोड़ आदमी तो अवश्य काम कर सकते हैं। आजकल उनमें से थोड़े तो धनी होने के कारण काम करने में अपनी हतक समझते हैं। यही नहीं, उनको अपने शरीर की देख-भाल, सेवा टहल के लिए भी दर्जनों आदमी चाहिए। वह स्वयं भी काहिल हैं और दूसरे के काम के भी चोर। लेकिन जो लोग काम कर सकते हैं, क्या उन सबको काम मिलता है? किसी पूँजीवादी देश में सबको काम मिल ही नहीं सकता। मिल-मालिकों और जमींदारों को एक परिमित संख्या में ही मजदूर चाहिए। राजा-महाराजों, सेठ साहूकारों के खिदमतगारों का काम उत्पादक-श्रम नहीं है, क्योंकि उनके काम से मनुष्य जीवन के लिए आवश्यक कोई चीज उत्पन्न नहीं की जा सकती। आखिर श्रम और वेतन एक-दूसरे पर आश्रित चीजें हैं। जब श्रम खाने पहिनने, रहने की चीजों को पैदा करता है, तो श्रमिक को यह चीजें रुपये पैसे के संकेत से वेतन के रूप में मिलती हैं। जितनी ही जीवन की उपयोगी चीजें अधिक परिमाण में पैदा होंगी, उतनी ही वेतन में पराखदिली होगी, लेकिन पूँजीवाद तो सभी कामों को करता है नफ

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Format: Paperback

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