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Paperback Divodas [Hindi] Book

ISBN: 9356824657

ISBN13: 9789356824652

Divodas [Hindi]

अपने जन को सब तरह से सुखी और समृद्ध बनाने का निश्चय दिवोदास ने कर लिया था। अपने परिवार के लिए उसे चिन्ता नहीं थी। पिता द्वारा अर्जित पशु और धन उसके पास पर्याप्त था। अपनी स्वाभाविक रुचि तथा ऋषि की शिक्षा के कारण उसमें कोई व्यसन नहीं था। सरल, परिश्रमी जीवन उसे पसन्द था। पर, जब तक सारा जन कष्ट से मुक्त न हो, तब तक वह कैसे चैन ले सकता था? विपाश (व्यास), शतद्रु और परुष्णी के बीच की अपनी जन्मभूमि में वह केवल अपने पशुओं के साथ विचरण नहीं करता था, बल्कि अपने लोगों को समीप देखने, उनके साथ घनिष्ठता स्थापित करने के लिए भी ऐसा करते समय एक बार उसका ग्राम (समूह) परुष्णी (रावी) के किनारे बहुत उत्तर में पड़ा हुआ था। राजा का कर्तव्य था, लोगों के पारस्परिक झगड़े को दूर करना

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